आज फिर है उसके चेहरे पर खुशनुमा मिजाज़
मुद्दत के बाद मिली तकदीर उसे जागीर में,
जमघट से अलग अब नज़र आता है वो,
वक़्त मोहताज अब उसकी कद्रदानी का,
कुतरी हुई तमन्नाएँ भी हैं अब पूरी वफादार,
आर्ज़ू के प्याले गुम हैं खामोश मोशिकी में,
मोहब्बत व नफ़रत के मोती पिरोता वो आँखें मूँद,
कण कण में फैला उसका रुतबा, पर शख्सियत नहीं...
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