कोहरे में कंपकपाती रात, दस्तक देती मेरे दरवाज़े पे रात,
चाँद से मुह फेर अपने ही कालेपन के श्रृंगार से सुशोभित,
एक लोटा चांदनी के बदले सियाह्पन का राज़ खोलने आई
यह रात कहीं बिछड़ गयी थी अपने तारों की छावनी से,
टूटते तारे के इंतज़ार में तमन्नाओं की गठरी लिए बेठी थी|
मैंने कहा तू क्या करेगी अपनी हद का फल्सबा मुझे सुनाके
आखों में पड़ी किरकिरी के साथ उसे भी सुबह भूल जाउंगी,
अँधेरे पे गर्व करती रहस्मय ढंग से मुझ पे हंसी वो कमीनी
और बोली "लाल है मेरा चाँद निहत्था खड़ा काले धुंए में"
कोहरे में कंपकपाती रात दस्तक देती मेरे दरवाज़े पे रात|
चाँद से मुह फेर अपने ही कालेपन के श्रृंगार से सुशोभित,
एक लोटा चांदनी के बदले सियाह्पन का राज़ खोलने आई
यह रात कहीं बिछड़ गयी थी अपने तारों की छावनी से,
टूटते तारे के इंतज़ार में तमन्नाओं की गठरी लिए बेठी थी|
मैंने कहा तू क्या करेगी अपनी हद का फल्सबा मुझे सुनाके
आखों में पड़ी किरकिरी के साथ उसे भी सुबह भूल जाउंगी,
अँधेरे पे गर्व करती रहस्मय ढंग से मुझ पे हंसी वो कमीनी
और बोली "लाल है मेरा चाँद निहत्था खड़ा काले धुंए में"
कोहरे में कंपकपाती रात दस्तक देती मेरे दरवाज़े पे रात|
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