गीले तिनकों से फिसल जाते हैं पल
जो तेरे साथ में गुज़रते हैं,
पल नहीं ये ओस की बूँदें हैं
जो ख्वाबों की तितलियों के परों पे सवार
तुम्हारे आशियाने की नमी बन जायेंगे|
पल जो उतारे थे तेरी गर्दन से,
पल जो कहीं पीठ पे गुम हो बैठे हैं,
पल जो गुम्साज थे लकीरों में,
पल जो आवाज़ तक खो बैठे|
पल जो कहीं पीठ पे गुम हो बैठे हैं,
पल जो गुम्साज थे लकीरों में,
पल जो आवाज़ तक खो बैठे|
वो विषाद की लकीरें जो अटकती
मेरी आँखों में किरकिरी बनके,
कि भटकती राह दिखा दो उन पलों को
जानती हूँ पल और इंतज़ार इश्क का विस्तार है
कोई ऐसा राग सुनाओ जिसका इंतज़ार ये पल करें|
मेरी आँखों में किरकिरी बनके,
कि भटकती राह दिखा दो उन पलों को
जानती हूँ पल और इंतज़ार इश्क का विस्तार है
कोई ऐसा राग सुनाओ जिसका इंतज़ार ये पल करें|
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