रात की -
कन्जन्क्टीवाईटिस सी आँखों में,
मेरी कल्पना,
मेरे सपनो की गोधूली के बीच,
नज़र आती वह अदृश्य- मृगतृष्णा भूमि
तर्क-वर्णन करती,
मुझसे चंचल मैं,
"सत्य क्या है?
"यह जगह -
"जहाँ हम रहते हैं?",
यह गुम्बज -
"जहाँ हम रहते हैं?",
यह गुम्बज -
जैसे जीवन के ग्लोब पर स्थिर -
लघु कथा,
अंततः फिर प्रवेश होता,
मेरे जीवन प्रतिक पर,
रात और दिन का एकीकरण ।
लघु कथा,
अंततः फिर प्रवेश होता,
मेरे जीवन प्रतिक पर,
रात और दिन का एकीकरण ।
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