(चित्र: फ्रीडा काहलो - मेरी मनपसंद चित्रकारों में से) |
पुन: मृत्यु प्रतीक्षा में,
एकमात्र खोज करती - स्वयं,
जीवन अस्तित्व में स्थिर
आगमन वास्तविकता का -
पद प्रदर्शक का रूप धारण किये |
मृत्यु अपने प्रयोजन की -
खामोश मार्ग दर्शक बन,
मेरे भीतर अपनी दराँती की चमक,
प्रकाशित करती - बनके विश्वात्मा |
परन्तु ये अटल प्रेत - अपरिचित,
समय के मोनोक्रोम से,
जो है संभवतः - मेरा भाग्यविधाता,
और मृत्यु की प्राणहर झंकार,
गुंजायमान - जीवन प्रक्रिया के परिमाण पर |
2 comments:
सुन्दर है मृत्यु की तरह ...
dhanyawad Navin ji...mrityu wakai sundar hoti hai kyunki uske baad hi to jivan chakr shuru hota hai :)
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