हो री पतंग बादलों के बीच तू लहरा कुछ ऐसे,
उनके होठों की आधी चांदनी फैली हो जैसे
धुप के मोती उनके आँगन में डालके तू पतंग
कहना वक़्त भी अपनी राह में खोजे उनका संग
अपनी उँगलियों में कस लूँगी इस कदर तेरी डोर
की वापस लेके आएगी तू उनकी बातों की भोर
हो री पतंग बादलों के बीच तू लहरा कुछ ऐसे,
उनके होठों की आधी चांदनी फैली हो जैसे
आँखों की ओस से लिख दूँ तेरे कागज़ पे कुछ बात
छत पे जाके देख कैसे करें वो तारों में मुझसे मुलाकात
बारिश की बूंदों से अगर हो जाये कुछ मद्धम तेरा रुख,
उनके तकिये से कहना इंतज़ार में बेठी बाँटने सुख-दुख
हो री पतंग बादलों के बीच तू लहरा कुछ ऐसे,
उनके होठों की आधी चांदनी फैली हो जैसे
2 comments:
ओ मेरे बचपन तू गुब्बारा बनकर उड़ लेकिन फिर तू लौट कर आ .... काव्य की उड़ान अच्छी
narendra sharma
@Narendra Sharma dhanyawad sir :)
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