निगल जा मेरे अभेद मन की
गंदगी को अपनी पूर्णता में,
और मिश्रित कर दे मेरा
मेरा समूचा कूड़ा-कड़कट,
धैर्य से एकाग्रित -
वो विचारों की खुराक
अपने इस अवैध रसातल में,
और उभरने दे मेरी नाक से
शरीर के कण-कण को-
पश्चाताप के बुलबुलों की तरह,
इस सृष्टि के एकांत-प्रवाह में...
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