Dichterin(दिश्तेरिन)
Tuesday, January 24, 2012
दिल...
हुस्न-ए-पतझड़ की हमाकत सा दिल,
अंगारे तालुक में सुलघ्ता सा दिल,
कातिल है मेरे अरमान-ए-ख़ास का?
फिर परिंदा ख्वाइशों पे उड़ने की जिद्द,
डूबने चला फिर ख़्वाबों के सराब में,
तर्बिअत पाज़ीर पतझड़ में क्या तलाशे?
भीगा जब हर लम्हा तक्दीस-ए-फरहत में...
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