Dichterin(दिश्तेरिन)
Friday, March 23, 2012
जीवन संगिनी
दिवार की शुन्यता पे टंगी,
खुरचन सी टपकती,
उसकी हंसी,
मेरी आँखों की पुतलियों की चमक |
झूर्रियों वाले चित्र की अमूर्तता,
सीने पे स्थाई गुम्बज,
वो काल का अंतिम छल-कपट,
और प्रवेश द्वार पे खड़ी,
वो मेरी जीवन संगिनी |
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment