कई बार युवा अवस्था में खुद को मनोचिकित्सक एवं साधुओं-फकीरों से भी दिखवाया कि मैं अपने भीतर के संसार और बाहर के संसार में समझ और संतुलन क्यूँ नहीं बिठा पा रही| सब ने खूब दवाइयां, पत्थर और मालायें दीं मुझे पहनने को परंतु मुझे यह नहीं समझा सके कि मेरे जीवन के अर्थ का विश्लेषण करने का तरीका बिल्कुल अलग क्यूँ है| वो यह नहीं समझा पाए मुझे कि क्यूँ मुझे नीरसता और उदासीनता में सुकून मिलता है| शायद वो नहीं जानते थे कि अपने सपने का तकिया बनाके उसपे सोना और अगले दिन सूर्य कि पहली किरण के साथ उस सपने को पूरा करने कि आशा को लेकर घंटो सोचते रहना क्या होता है| अगर इच्छाएं घोड़े पे सवार होती तो इस मुखौटा पहने संसार कि हर बात का विश्वास हो जाता पर सत्य हमारी सोच से बहुत गूढ़ है और ऐसी कल्पना से साहस कि उम्मीद रखना व्यर्थ ही रहेगा| शायद रबिन्द्रनाथ टैगोर ठीक कहते हैं, "एकला चलो रे"...
Wednesday, March 28, 2012
अकेलापन (आत्म अवलोकन) - 36 Chowranghee Lane देखने के पश्चात्
कई बार युवा अवस्था में खुद को मनोचिकित्सक एवं साधुओं-फकीरों से भी दिखवाया कि मैं अपने भीतर के संसार और बाहर के संसार में समझ और संतुलन क्यूँ नहीं बिठा पा रही| सब ने खूब दवाइयां, पत्थर और मालायें दीं मुझे पहनने को परंतु मुझे यह नहीं समझा सके कि मेरे जीवन के अर्थ का विश्लेषण करने का तरीका बिल्कुल अलग क्यूँ है| वो यह नहीं समझा पाए मुझे कि क्यूँ मुझे नीरसता और उदासीनता में सुकून मिलता है| शायद वो नहीं जानते थे कि अपने सपने का तकिया बनाके उसपे सोना और अगले दिन सूर्य कि पहली किरण के साथ उस सपने को पूरा करने कि आशा को लेकर घंटो सोचते रहना क्या होता है| अगर इच्छाएं घोड़े पे सवार होती तो इस मुखौटा पहने संसार कि हर बात का विश्वास हो जाता पर सत्य हमारी सोच से बहुत गूढ़ है और ऐसी कल्पना से साहस कि उम्मीद रखना व्यर्थ ही रहेगा| शायद रबिन्द्रनाथ टैगोर ठीक कहते हैं, "एकला चलो रे"...
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment