Dichterin(दिश्तेरिन)
Tuesday, April 3, 2012
बस यूँ ही अंतर्मन से...
मेरी कल्पना जीत जाती है - कभी कभी
प्राकृतिक वास्तविकताओं से,
यह धोखा सहने योग्य था,
असहनीय दर्द शुरू हुआ जब - मुस्कान से वंचित,
अवसर प्रवेश करने गया था,
मैदान में- ख्वाबों के |
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