तेरा उन्स जो बहता था मेरे जिस्म में लहू की तरह
अब वो गुम्साज़ है माज़ी में आँखों की गर्द बनके
तेरा ख्याल जो बहल करता था रूह को शगुफ्ता की तरह
अब वो फिरता है परिंदों का आवारा रहनुमा बनके
तेरा हर लफ्ज़ सजता था मेरे आशियाने में मैखाने की तरह
अब वो नशा भी बंद है इन दुनयावी दीवारों में स्याह बनके
तेरा फरमान बहता था चौबारे की हवाओं में तक्दीस की तरह
अब वो सड़कों पर तिलमिलाता है सुर्ख पत्तों का नाजोमी बनके...
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