यदि होता अपरिचित बहते रक्त का,
जिजीविषा से बाध्य मनभावन स्वरुप,
मेरी विरक्त आत्मा की प्रतिध्वनि
लयबद्ध विलक्षण का प्रतिच्छेद करती,
और तनुकृत हो जाते असंख्य काव्य
मेरी शिशु जैसी निष्कलंक चेतना पर ।
यदि श्वास से उत्पन घर्षण संग होता,
जिजीविषा का सुस्थिर एकीकारण,
मेरे निषेधित शून्य जीवन की लय,
अपरिहार्य क्षय को भी तेजस्वी करती,
तत्पश्चात उस माधुरी का उत्सर्जन भी
मेरे पात्र की स्मृति में संगत हो जाता ।
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