तुम्हारी चहलकदमी संग यूँ ही फिरते हुए,
जीवन के नीरस स्वांग को नापते समय,
पाये मैंने प्रेम के वायुमंडल के सभी रहस्य,
जो मेहकें अनंत काल तक मेरी जटाओं में ।
फिर जब संवेदना में शोक ग्रस्त हो सखियाँ,
तुम मेरी इन जटाओं में उँगलियाँ फेर कर,
उनसे कहना की भस्म न करें इन्हें चिता में,
क्यूँकी बहता है इनकी युक्तियों में प्रेम रस ।
और तीव्र बढ़तीं हुई यह काल सर्प योगिनी,
पञ्च तत्व में लुप्त रखे मेरी निर्दोष वासनायें,
कि जब पुन आगमन हो मेरा तुम्हारी मृदुता में,
प्रणय कि साक्षी रहे ये कालिनी अन्य पक्ष से ।
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