Wednesday, December 22, 2010

नारी


कभी ममता का दुलार, कभी नन्ही सी किलकारी
कभी बहना की प्यारी राखी, कभी संगीनी की ओढ़नी प्यारी
बागबान ने खिलाई थी वो नन्ही सी फुल्कारी
कली से जब बनी फूल वो,आ गई ले जाने भंवरों की सवारी
कहाँ छुपती वो, हर जगह थी बेरहम दुनियादारी
वो माटी की बन्नो सुलगती रही धूप में सारी
सरस्वती की विद्या , कभी लक्ष्मी बन सिक्कों की झंकारी
यही सोच लोग बनाते रहे बार बार उस पर अत्याचारी
नही जाना यही महीषासुर वध वाली दुर्गा सिंह पर सवांरी
माटी की बन्नों सुलग सुलग के रूप ले बैठी न्यारी
हुआ मनुष्य बेचैंन और औरत की आरती उतारी
दुनिया सोचती बस छह मीटर कपङे मे रहे उम्र सारी
ना जाने लोग यही सौम्यरूप से रुद्र्रूप ले लेती हे नारी
ना फुलकारी ना माटी बस हर युग,क्षेत्र में इसने बाज़ी मारी
आओ खुशी मनाऎं गर्व करें की हम हैं नारी, हम हैं नारी...