Monday, June 24, 2013

नास्तिकता ( चित्र : द्वारा एफ.एन सूज़ा )








धार्मिक अवधारणा के स्वांग से 
उदासीन होता मेरा भिक्षुक मन,
लगाता निष्कपट प्रशन-बोधक चिन्ह
परम अस्तित्व के गुण में यथार्थ पर ।

फिर आस्तिक रसातल का स्मरण
काल्पनिक अवरोध की रेखा खींच देता,
जैसे किसी कुंठित रात्रि में बंदी मनुष्य
खोज करता अपनी जिजीविषा का ।

नास्तिकता से उत्पन कला सृजक
मुझे मुक्त कर देता दिव्य-दोष से,
और जीवन में अवचेतन ही परस्पर
बन जाता मानार्थ अज्ञेयवाद का ।

तत्पश्चात इस प्रकृति का वर्चस्व
अथाह हो जाता मेरी इन्द्रियों में,
और यत्र, तत्र, सर्वत्र एकत्रित हो जाती,
स्वयं संपन्न सिद्धि की अतिश्योक्ति ।