क्या सुनाऊँ तुझे मैं दास्तान-ए-ज़िन्दगी ?
वो तिनके तिनके सी अधूरी मेरी मुस्कान
न बना दे कहीं तुझे काफ़िर मेरी दर्द-ए-मौशिकी
क्या शिकवा करूँ दिल से जो तुझे जान के भी कह रहा अनजान ?
क्या समझ पायेगा तू मेरी अनकही इबादत से वफ़ा ?
गुमशुदा कर देगा तुझे मेरी तनहाइयों का सैलाब
तुझसे रूबरू न जाने क्यूँ लगे जैसे जन्नत-ए-खुदा
क्या तेरी रूह मेरी रूह से गुफ्तगू करने को है बेताब ?
क्या देख सकता है तू मेरी आँखों में वो बेबसी ?
दूरियों के बावजूद भी मैं रहूँ सिर्फ तेरा ही साया
तेरा उन्स तेरे एहसास की तड़प जैसे कोई कातिल-ए-मदहोशी
क्या तेरा इश्क है वक़्त का मोहताज या है ख़ामोशी तक अव्यय ?