Tuesday, December 13, 2011

पंछी...




  अलविदा कहते उन पंछियों को आवाज़ लगाती मैं
ले जाओ लिफाफे में बंद मेरी धड़कनें पिया की गली,
कह दो लाल रंग उसके नाम का इंतज़ार करता है ।
इन पंछियों को अजब सी घिन सिंदूरी लालिमा से,
शायद पंख खून की कीचड़ के धब्बों से सन गए हैं ।
सावन में पतझड़ जैसे मायूस वह अब चहचहाते नहीं,
काले धुंए में पिया का घर धुंधला सा नज़र आता उन्हें
और मैं उम्मीद के दाने छज्जे पर बिखेरते रहती ।