Monday, October 3, 2011

फेसबुक





कैसी अजब जगह है फेसबुक,जहाँ लोग यूँ ही मिल जाते हैं,


जाने-अनजाने लोगों से अपने दिल का हाल सुनाते हैं ,


दो अजनबी बन जाते दोस्त रहकर सात समुन्दर पार,


लेकिन अपने घर पे है अटपटा सा उनका व्यवहार,


कई दोस्त ऐसे मेरे भी बने जिनका न देखा चेहरा,


कुछ मुट्ठी भर हंसी के साथी, कुछ कर गए दिल में बसेरा,


फेसबुक पे आके लगा आ गए बचपन के दिन लौट,


पर उन अज़ीज़ रिश्तों ने पहन लिया था मुखौटा,


खुश हूँ उसने मुझे मिलाया मेरी खोयी पहचान से,


वही  जो मेरी ख़ामोशी को भी पढ़ लेता आराम से,


जाते हुए एक सवाल पूछती हूँ आप से 


"क्या मैं हूँ बड़ी नादाँ ?"

या फेसबुक जगह है मेरे लिए अनजान?"..