Saturday, April 7, 2012

पलों की तुकबंदी


गीले तिनकों से फिसल जाते हैं पल              

जो तेरे साथ में गुज़रते हैं,

पल नहीं ये ओस की बूँदें हैं

जो ख्वाबों की तितलियों के परों पे सवार

तुम्हारे आशियाने की नमी बन जायेंगे|


पल जो उतारे थे तेरी गर्दन से,

पल जो कहीं पीठ पे गुम हो बैठे हैं,

पल जो गुम्साज थे लकीरों में,

पल जो आवाज़ तक खो बैठे|


वो विषाद की लकीरें जो अटकती

मेरी आँखों में किरकिरी बनके,

कि भटकती राह दिखा दो उन पलों को

जानती हूँ पल और इंतज़ार इश्क का विस्तार है

कोई ऐसा राग सुनाओ जिसका इंतज़ार ये पल करें|