Tuesday, July 26, 2011

" इलेक्ट्रिक चूल्हा "






कुछ गिने चुने स्टील के बर्तन,
ज़रूरत के हिसाब से मसाले,
बस इतना ही था उस भावनाहीन कमरे में
उस दिन जैसे गृहिणी की रसोई बन गया था
वो कोने में पड़ा 'इलेक्ट्रिक चूल्हा' |



वो 2/2 की जगह अन्नपूर्णा  का स्वागत करने लगी,
कुटुंब की दास्तान सुनाती जैसे दाल-सब्ज़ी,
कई दिनों से वो साधारण रूप वाला, 
ज़ंग खाता हुआ - जलने पर,
 हमारे प्यार जैसे जगमगा उठा ' इलेक्ट्रिक चूल्हा ' |



तुम्हारा मेरे हाथ से निवाले को लपक कर खाना,
4-5 वर्ष के बालक जैसे  टुक - टुकी  लगाये 
थाली में पड़े दाल भात को ताकना,
हमारे इसी प्यार की मासूमियत को देख,
गर्व और ख़ुशी से झूम उठा वो ' इलेक्ट्रिक चूल्हा ' |