Tuesday, October 18, 2011

शख्सियत


आज फिर है उसके चेहरे पर खुशनुमा मिजाज़
मुद्दत के बाद मिली तकदीर उसे जागीर में,
जमघट से अलग अब नज़र आता है वो,
वक़्त मोहताज अब उसकी कद्रदानी का,
कुतरी हुई तमन्नाएँ भी हैं अब पूरी वफादार,
आर्ज़ू के प्याले गुम हैं खामोश मोशिकी में,
मोहब्बत व नफ़रत के मोती पिरोता वो आँखें मूँद,
कण कण में फैला उसका रुतबा, पर शख्सियत नहीं...