Friday, December 31, 2010

मैँ बावरी, मस्त् मौला




मैँ बावरी, मस्त मौला
कभी खाली, कभी भरा मेरी ज़िन्दगी का झोला
मदहोशी नहीं, होश में भी मेरा दिल डोला
मैँ बावरी, मस्त मौला

ग़म में मैँ नाचूँ हो कर मगन 
ख़ुशी  में हंसता मेरे संग गगन
मुझसे  ही मेरा मन बोला
मैँ बावरी, मस्त मौला

चाहे हो नादान बचपन या ज़िद्दी जवानी
हर दिन ज़िन्दगी का, एक न‌ई कहानी
हंसते हु‌ए  पीना ज़िन्दगी का खट्टा-मीठा प्याला
मैं बावरी, मस्त मौला
मैं बावरी मस्त मौला




Friday, December 24, 2010

"तेरी मेरी बातें"


तेरी मेरी बातें
वो कही अनकही बातें
दिल की आरजू का धङकता हु‌आ आगाज़
तुझसे न को‌इ शिकवा, न हु‌आ तुझे को‌ई एह्सास
न जाने क्यूँ  रूठता सा फिर मेरी तमन्ना‌ओं का बाज़ार
वो तेरी मेरी बातें

तेरी मेरी बातें
वो खुशी या गम की मुलाकातें
ज़िन्दगी की दूर थी मंज़िल
कुछ कदम चले तुम, कुछ हम
कहा था तुमने, बस ऐसे ही देना साथ
फ़िर चाहे हो खुशी या गम की महफ़िल
वो तेरी मेरी बातें

तेरी मेरी बातें
एक साथ बिताये वो दिन, वो रातें
अब तेरे इश्क के मझदार की करूँ इबादत
ये है ऊन्स या सुरूर या है कयामत
मेरे मालिक ने की दु‌आ कुबूल मेरी
तुझसे पहले दी मेरे जनाज़े को इज्जाज़त
वो तेरी मेरी बातें..वो तेरी मेरी बातें

Thursday, December 23, 2010

हम तुम एक दिल, एक जान




हम- तुम एक दिल, एक जान
रिमझिम रुनझुन बारिश  की बूँदें
हम-तुम एक दिल, एक जान
इस मौसम में सुलगते रहें

क्या सुहानी है यह हवा
जैसे वक्त न था और जवान
कुछ भीगता सा तन तेरा, कुछ मेरा
इन आँखों में रहे तेरे इश्क का बसेरा

हम- तुम एक दिल, एक जान
ऐ मेरे जाने जहान, हम तुम एक दिल, एक जान

न को‌ई लफ्ज़. न को‌ई बात हो
ऐ जाने जहान बस यूँही  मुलाकात हो
हम-तुम एक दिल, एक जान
तेरे रुबरू से धङकता यह दिल
बस आज इस खामोश  मोशिकी में इश्क कयामत हो

हम- तुम एक दिल, एक जान
ऐ मेरे जाने जहान
हम- तुम एक दिल, एक जान

Wednesday, December 22, 2010

नारी


कभी ममता का दुलार, कभी नन्ही सी किलकारी
कभी बहना की प्यारी राखी, कभी संगीनी की ओढ़नी प्यारी
बागबान ने खिलाई थी वो नन्ही सी फुल्कारी
कली से जब बनी फूल वो,आ गई ले जाने भंवरों की सवारी
कहाँ छुपती वो, हर जगह थी बेरहम दुनियादारी
वो माटी की बन्नो सुलगती रही धूप में सारी
सरस्वती की विद्या , कभी लक्ष्मी बन सिक्कों की झंकारी
यही सोच लोग बनाते रहे बार बार उस पर अत्याचारी
नही जाना यही महीषासुर वध वाली दुर्गा सिंह पर सवांरी
माटी की बन्नों सुलग सुलग के रूप ले बैठी न्यारी
हुआ मनुष्य बेचैंन और औरत की आरती उतारी
दुनिया सोचती बस छह मीटर कपङे मे रहे उम्र सारी
ना जाने लोग यही सौम्यरूप से रुद्र्रूप ले लेती हे नारी
ना फुलकारी ना माटी बस हर युग,क्षेत्र में इसने बाज़ी मारी
आओ खुशी मनाऎं गर्व करें की हम हैं नारी, हम हैं नारी...