Saturday, February 16, 2013

प्रेम के अविनाशी समूह ( चित्र : द्वारा अनुपम सूद )





आओ उग्र प्रेमी बनके एक दुसरे को निहारें,
कि हमारी गतिहीन आत्माएँ सूचित हो जाएँ,
संकोची जीवन के निधन की बाहें पकड़ने में,
और हम बंदी बन जाएँ अपनी रूमानी समामेलन के।

आओ अबोध प्रेमी बनके एक दुसरे को पुकारें,
कि हमारा समय भी धूल में परास्त हो जाये,
स्वयं को प्रेम के वशीकरण में ढालने के लिए,
और हम बंदी बन जाएँ अपनी त्यक्त कल्पनाओं के।

आओ अटल प्रेमी बनके एक दुसरे को संवारें,
कि स्तंभ हो जाये आदर्श समाज का अवगुंठन,
अपनी दुष्टता को प्रेम मधु में आश्रय देने के लिए,
और हम बंदी बन जाएँ अपनी प्रच्छन्न अधीनता के।