Thursday, May 24, 2012

बचपन का झिलमिल गुब्बारा

 (तस्वीर : अल्बर्ट लामोरिस्से की फिल्म 'दा रेड बलून' से)


ओ बचपन, ओ बचपन, 

उड़ जा तू गुब्बारा बनके,            
बचते बचाते सपने में,
जंगल की तीखी शाखाओं से,
न खरोंच दे तेरी अबोधता को,
अपने दुष्ट प्रयोजनों से घायल करके ।

कुचते हाथों से अपने गुब्बारे को सैर करा,
सूरज की किरणों के तिलिस्म में,
मुट्ठी में बांध कर झिलमिल चितियाँ,
लौटा दे मेरे आँखों की वो मीठी निंदिया
भेज कर बुलबुल की सुन्हेरी आवाज़ में ।