Thursday, January 5, 2012

धूप



धूप के कण-कण में पिरोई तुम्हारी धडकनों से,
रोशन होता अंजुमन के साथ मेरे जज़बातों का कोहरा,
यह धूप चीरती हुई मेरी रूह के खामोश अल्फाजों को,
आँखों में हंसी,लबों पे नमी बनके घर कर गयी है,
ख़्वाबों की मिटटी से बने मेरी आर्ज़ू के घड़े,
अब तुम्हारे इश्क की गर्मी में सूखने रख दिए हैं...