Saturday, June 29, 2013

जीव - दोष (चित्र : राजकुमारी भरानी थिरूनल रानी पारवती बाई द्वारा राजा रवि वर्मा)






विष्कंभ के मोहभंग से मुग्ध 

पथभ्रष्ट मेरा आतुर जीव-दोष,

ढूंढ़ता कितने ही परिवर्तन प्रायः

जीवन गहन के वन्य-कोटर में ।


फिर अदंडित प्राणों की सरणी,

पश्चाताप के विशाल रसातल में 

एकीकृत करती अपने स्वयं को

विश्व संघर्ष की परिधीय पर ।


अतः बनके मनुष्यता का यथार्थ,

स्थानिकता से होता स्थान का विच्छेद 

तत्पश्चात बनके गुण पूरक-प्रेरक 

करते 'दोष' से 'जीव' का पुनर्जागरण ।