Monday, December 10, 2012

मृत अनह्र से क्षमा याचना - (चित्र : अंजलि इला मेनन)




मुझे क्षमा कीजिये मेरे मृत अनहृ यदि मैं आपकी अंतिम यात्रा सम्बन्धी अनुष्ठानों में नहीं आ सकी |इस नैतिक रूप से घृणित फैसले की वजह सिर्फ मेरा डर है जो मुझे मूक और शुष्क बना देता है | डर स्वयं की अंतिमयात्रा की कल्पना या आग में भभकते मेरे हड्डी-मांस में मिश्रित उन लकड़ियों की चुभन का नहीं | परन्तु स्पष्ट मार्ग से आता एक ऐसा आकस्मिक डर जिसमें मेरे अंतर्ज्ञान को प्रकृति के उस छोटे से कण के विनाश का, यानि की तुम्हारा मेरे मृत अनह्र, आभास पूर्व ही हो जाता है |इस वरदान या शाप के पीछे मेरे पास कोई तर्क नहीं बस इतना की ये मुझे मेरे स्वयं के सामने बहुत मजबूर और अपराधी-सा बना देता है | यदि तुम्हारी राख की मर्म में पड़े सिक्के मेरे पास लौट आयें, तो मैं उनसे हमारे क्षणों के संस्मरण में संतरे की गोलियाँ फिर से खाके अपने डर के अपराध-बोध से मुक्त हो जाऊँ...