वो बरसात कि पहली बूंद का होठों को छूना,
वो सावन की हवा में लहराती ज़ुल्फें,
तेरे स्पर्श के एह्सास को उमड़ती हसरतें,
मौसम के झरोखे की लुका - छुपी का क्या है बहाना|
वो ठंड में तेरी सांसों की गरमाहट,
होठों की कम्पन से भी निकले तेरा नाम,
हर दस्तक पर लगे जैसे हो तेरी आहट,
मौसम के झरोखे क्युँ हैं गुमनाम|
वो तेरी हंसी की शादाब की महफिल,
तेरे इश्क़ में, नाउम्मीदी में दिखे उम्मीद,
ये दुआ ये जुनून कि पा लूंगी तुम्हें,
मौसम के झरोखे की कहाँ गई प्रीत।