Sunday, February 16, 2014

मिथ्यायनी (तसवीर: द्वारा Kumar Avyaya - https://www.facebook.com/kumar.avyaya?fref=ts)






मेरे मन के अंतर्गृह में प्रभावी होती कात्यायनी
प्रवेश मत होना यथार्थ में तुम पहने कषाय वस्त्र,
सर्व खंडन हो जाएगा जग में मेरे शब्दों का त्रम,
बस कविता तू रह जायेगी बनके मेरी मिथ्यायनी 

तेरे लोभ में हुआ मेरा जीव पथभ्रष्ट ओ दामिनी 
कि तत्व ज्ञान के महंत भी लगे कल्पना विनाशक,
अब तेरा प्रभाव है इतना मेरी इंद्रियों में वज्रसार,
मेरी मत्स्या अब विष भी बरसे बनके संजीवनी 

कल्पा तुम अपनी जटाओं में भरना अमृत वाणी 
करके मेरे रिक्त मन का जग में निर्लज शंख नाद,
फिर संभव तेरे स्त्राव में बह जाएँ अनेक प्रतिबन्ध 
और तू मिथ्या बन जाये मेरी सृष्टि की जीवन संगिनी...

स्त्री-स्तन : जीवन अनंत ( चित्र: Viktori Rampal Dzurenko)



अर्धनंगी लड़कियों के नृत्य से मोहित होता
वह नीति-परिनीति से भरा सामाजिक पिशाच
अक्सर स्त्री स्तन का यूँ स्पष्ट चित्रण देख
अपने पुरुषार्थ के आवेग में अधीर हो जाता
फिर कुंठा के मल से चित्रकार को कलंकित कर 
वह मिथ्य-ज्ञानी सांसारिक निपुणता को भोगता,
परन्तु यह नगनता से प्रतिकूल होता जीव
भूल जाता समूर्ण सृष्टि में अपने अस्तित्व को
जो विडम्बना से उसी स्तन की नीव से बना है
जिसके श्वेत नीर का आनंद निशब्द यथार्थ,
वह जिसके तत्व से असीमित जंतु विकसित हुए
और जिसका स्वरुप वाहिकाओं में अमिश्रित है,
वह प्रेम का मृदु पात्र जो निस्वार्थ भावना लुप्त,
सभी उदासीनता को अपने कोमल मर्म में छुपाता
जिससे प्रेमी की निराशा क्षणभंगुर रेह जाती
और रह जाता सिर्फ ममत्व का रसातल,
फिर भी ओ निपुणता के स्त्राव में फंसे तुम
मेरे इस चित्र को अभद्र घोषित कर देते हो,
यह कैसा तुम्हारा दोगुना मानक बुद्धिजीवी,
कि जीवन उत्तेजक को ही अवरोधक मान बैठे 
और कला को अभियक्ति का पित्त केह दिया,
यह पित्त नहीं तुम्हारी संकीर्णता पे वार है,
रक्त रंजित विरोध है इस नैतिक अश्लीलता पर,
जो ब्रह्माण्ड में तुम्हारी मनोवृत्ति के बीज को,
सृष्टि की उर्वरता हेतु सदेव खंडित कर देगा...



यत्र-तत्र (तसवीर: वृत्तचित्र 'सो हेदान सो होदान द्वारा Anjali Monteiro & K.P Jayasankar)


कारावास में क्या है,                                 
मेरे अपराधों के लिए ?
जब यत्र, तत्र, सर्वत्र,
मैं बंदी हूँ,

और स्वतंत्रता - 
एक मात्र मोहभंग,
फिर मुझ पर क्रोधित
मेरा आतुर जीव -
निषेधित अपनी कुंठा में,
मूर्ख !
ग्रस्त इस मोह में,
जिसका स्व भाजित      
सर्व तंत्र से,
और स्वतंत्रता -
एक अभिलाषित पिशाच...


नोट : वृत्तचित्र सूफी कवी 'शाह अब्दुल भीटाई' की मोहक शब्दों की विरासत, संगीत पर आधारित एक काव्यगत संयोजन है...


http://vimeo.com/37237448

कलाकार का प्रेम रसातल (तसवीर : Viktori Rampal Dzurenko)


चित्र द्वारा - https://www.facebook.com/pages/Viktori-a-Rampal-Art-Lab/222708664558537


प्रिय तुम्हारे प्रेम के रसातल में

शुन्य हो जाता मेरा अस्थिर जीव

और इस दोहरी निपुणता से विरक्त

मेरा कला मन हो जाता अनश्वर



फिर इस सृष्टि के चक्रव्यूह में

सम्मिलित हो जाते मेरे पूरक-प्रेरक

और मोहक होते सर्व कला प्रच्छन्न 

जैसे बनके हमारी प्रेम जिजीविषा



नीर ही रघुवीर






जीवन है तू गगन-गगरिया जल,
फिर भी क्यूँ मनु प्रीति निर्जल,
जो बाँटें तुझको मंथन की सीमा,
रह जाए बनके कुंठित शुष्क थल 

अनंत अचंभित तेरा यायावर रूप
बनके गुप्त कुसुमित काल स्वरुप,
दोष जो तुझ में डाले ज्ञानी मल,
करे देह-आत्म का मर्म कुरूप 

प्रजापति अखंड तेरे सर्व अध्याय 
भू आकाल में तेरा न कोई पर्याय,
यदि कभी हो तेरा सृष्टि से लोप,
ओ! वीर-नीर नष्ट है फिर मेरा अभिप्राय