Sunday, February 16, 2014

स्त्री-स्तन : जीवन अनंत ( चित्र: Viktori Rampal Dzurenko)



अर्धनंगी लड़कियों के नृत्य से मोहित होता
वह नीति-परिनीति से भरा सामाजिक पिशाच
अक्सर स्त्री स्तन का यूँ स्पष्ट चित्रण देख
अपने पुरुषार्थ के आवेग में अधीर हो जाता
फिर कुंठा के मल से चित्रकार को कलंकित कर 
वह मिथ्य-ज्ञानी सांसारिक निपुणता को भोगता,
परन्तु यह नगनता से प्रतिकूल होता जीव
भूल जाता समूर्ण सृष्टि में अपने अस्तित्व को
जो विडम्बना से उसी स्तन की नीव से बना है
जिसके श्वेत नीर का आनंद निशब्द यथार्थ,
वह जिसके तत्व से असीमित जंतु विकसित हुए
और जिसका स्वरुप वाहिकाओं में अमिश्रित है,
वह प्रेम का मृदु पात्र जो निस्वार्थ भावना लुप्त,
सभी उदासीनता को अपने कोमल मर्म में छुपाता
जिससे प्रेमी की निराशा क्षणभंगुर रेह जाती
और रह जाता सिर्फ ममत्व का रसातल,
फिर भी ओ निपुणता के स्त्राव में फंसे तुम
मेरे इस चित्र को अभद्र घोषित कर देते हो,
यह कैसा तुम्हारा दोगुना मानक बुद्धिजीवी,
कि जीवन उत्तेजक को ही अवरोधक मान बैठे 
और कला को अभियक्ति का पित्त केह दिया,
यह पित्त नहीं तुम्हारी संकीर्णता पे वार है,
रक्त रंजित विरोध है इस नैतिक अश्लीलता पर,
जो ब्रह्माण्ड में तुम्हारी मनोवृत्ति के बीज को,
सृष्टि की उर्वरता हेतु सदेव खंडित कर देगा...



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