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चित्र द्वारा - https://www.facebook.com/pages/Viktori-a-Rampal-Art-Lab/222708664558537 |
प्रिय तुम्हारे प्रेम के रसातल में
शुन्य हो जाता मेरा अस्थिर जीव
और इस दोहरी निपुणता से विरक्त
मेरा कला मन हो जाता अनश्वर
फिर इस सृष्टि के चक्रव्यूह में
सम्मिलित हो जाते मेरे पूरक-प्रेरक
और मोहक होते सर्व कला प्रच्छन्न
जैसे बनके हमारी प्रेम जिजीविषा
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