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Sunday, February 16, 2014

यत्र-तत्र (तसवीर: वृत्तचित्र 'सो हेदान सो होदान द्वारा Anjali Monteiro & K.P Jayasankar)


कारावास में क्या है,                                 
मेरे अपराधों के लिए ?
जब यत्र, तत्र, सर्वत्र,
मैं बंदी हूँ,

और स्वतंत्रता - 
एक मात्र मोहभंग,
फिर मुझ पर क्रोधित
मेरा आतुर जीव -
निषेधित अपनी कुंठा में,
मूर्ख !
ग्रस्त इस मोह में,
जिसका स्व भाजित      
सर्व तंत्र से,
और स्वतंत्रता -
एक अभिलाषित पिशाच...


नोट : वृत्तचित्र सूफी कवी 'शाह अब्दुल भीटाई' की मोहक शब्दों की विरासत, संगीत पर आधारित एक काव्यगत संयोजन है...


http://vimeo.com/37237448

Tuesday, April 30, 2013

जटाओं में विलीन कामा - चित्र ( ब्रीफ एंकाउंटर द्वारा डेविड लीन )





तुम्हारी चहलकदमी संग यूँ ही फिरते हुए,
जीवन के नीरस स्वांग को नापते समय,
पाये मैंने प्रेम के वायुमंडल के सभी रहस्य,
जो मेहकें अनंत काल तक मेरी जटाओं में ।

फिर जब संवेदना में शोक ग्रस्त हो सखियाँ,
तुम मेरी इन जटाओं में उँगलियाँ फेर कर,
उनसे कहना की भस्म न करें इन्हें चिता में,
क्यूँकी बहता है इनकी युक्तियों में प्रेम रस ।

और तीव्र बढ़तीं हुई यह काल सर्प योगिनी,
पञ्च तत्व में लुप्त रखे मेरी निर्दोष वासनायें,
कि जब पुन आगमन हो मेरा तुम्हारी मृदुता में,
प्रणय कि साक्षी रहे ये कालिनी अन्य पक्ष से ।

Saturday, February 16, 2013

प्रेम के अविनाशी समूह ( चित्र : द्वारा अनुपम सूद )





आओ उग्र प्रेमी बनके एक दुसरे को निहारें,
कि हमारी गतिहीन आत्माएँ सूचित हो जाएँ,
संकोची जीवन के निधन की बाहें पकड़ने में,
और हम बंदी बन जाएँ अपनी रूमानी समामेलन के।

आओ अबोध प्रेमी बनके एक दुसरे को पुकारें,
कि हमारा समय भी धूल में परास्त हो जाये,
स्वयं को प्रेम के वशीकरण में ढालने के लिए,
और हम बंदी बन जाएँ अपनी त्यक्त कल्पनाओं के।

आओ अटल प्रेमी बनके एक दुसरे को संवारें,
कि स्तंभ हो जाये आदर्श समाज का अवगुंठन,
अपनी दुष्टता को प्रेम मधु में आश्रय देने के लिए,
और हम बंदी बन जाएँ अपनी प्रच्छन्न अधीनता के।