Dichterin(दिश्तेरिन)
Friday, June 2, 2017
चाय !!
चाय की पत्ती सी कड़वी मैं
अदृश्य होते धुएं से तुम,
उबलते पानी का रंग बदलती मैं
पानी के उबाल से उठते तुम,
फिर भी यत्र, तत्र और सर्वत्र में
अपना मिलन है अजब प्रिय
जैसे तुममें महकती में —
मेरी महक में बसे तुम,
और अनंत काल से दुनिया के लिए हम एक — चाय!!
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