Friday, June 2, 2017

अधेड़ बचपन–पूरा प्रेम !



आओ हम तुम घास की चादर ओढ़ कर
दौड़ती हुई गाड़ियों के बीच ढूंढें
कुछ कोपलें उस अमन–शांति की
जिसकी मिठास छुपी रहती थी
उन बूढ़ी आंखों की कहानियों में
जहां मेरे प्रिय तुम सिर्फ तुम थे–
मैं सिर्फ मैं,
और बीच में दौड़ता तेज़ी से बचपन,
निक्कर और फ्रॉक में उलझता
वो बहुरूपिया डिब्बा,
वो मर मर्ज़ी चिपकते बुड्ढी के बाल;
तिलिस्म का भ्रम भस्म हो गया
गाड़ियों के धुएं के संग,
वो मिठास बालों की
कहीं किसी वीराने में लटकती है,
उस धुएं को बाहों में भर लो प्रिय–
ले चलो उन खंडहरों में,
जहां यह गाडियां नहीं
बस हो घास संग उगती काई सा
हमारा प्रेम –
किकलियों में खिलता,
और मन मौजी हम गिरते हुए
अधेड़ उम्र का बालपन जी उठें...
© सौम्या शर्मा
- ध्यान का चमत्कार...रचनात्मक ऊर्जा :)

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