Sunday, January 29, 2012

शोक...






मैं नहीं जानती की शोक के समय सहानुभूति के कौन से शब्द पीड़ित को बोले जाते हैं,यह इसलिए नहीं की मेरा यह मानना है की आत्मा मृत्युंजय है और कुछ समय बाद उस गुज़रे हुए व्यक्ति का पुनः किसी अन्य रूप में आगमन होगा,परन्तु सत्य यह है की मैं शोक सभा में प्रस्तुत जनों की दुख़ की सीमा को भांप नहीं पाती,यदि कोशिश करती हूँ तो मन में सवाल उठता है की जब उनका उस मृत व्यक्ति के जीवन में पहला दिन हुआ होगा तो उन दोनों की मानसिक और शारीरिक स्तिथि कैसी होगी? 


क्या अपने प्रेम और हर्ष की सीमा को वो लाँघ पाए होंगे या फिर उनका रिश्ता समय और संसार की बढती गतिविदियों के साथ कुछ धुंधला सा हो गया होगा?ऐसी किसी बेढंगी सी सोच में पड़ कर मैं उस शोक ग्रस्त व्यक्ति के अंतर्मन को टटोलने की कोशिश न करके उस पल एकाएक जो शब्द मुह से निकलते उन्हें ही उप्रीत समझ अपनी प्रस्तुति का सबूत जैसी उसे दे देती|उस मृत सफ़ेद चद्दर में लिपटे इन्सान के भावों का एहसास मुझे ज्ञात नहीं हो सकता,शायद होता तो कोशिश करती की बाकियों जैसी मेरी आँखें भी नम हो जाएँ|तब तक मृत्यु के समय भावों के एहसास को मुझे समझने की शायद ज़रूरत नहीं या फिर किसी करीबी के गुज़र जाने का इंतज़ार करूँ|



No comments: