Friday, March 9, 2012

नीचे खड़ी एक स्त्री

एक दिन भोर होते ही अपने कमरे की खिड़की से बाहर झांक के देखा तो नीचे खड़ी एक स्त्री की आकृति नज़र आई| वो कुछ हाथों के इशारे करती जा रही थी, धूप के कारण वो सब मुझे अलग-अलग आकृतियाँ नज़र आईं| फिर कुछ समय बाद जब रात के सपनों की किरकिरी पानी की छपकियों से साफ़ कर दोबारा उस स्त्री को देखना चाहा, तो हैरानी की बात यह नज़र आई की वो स्त्री मैं ही थी| हुआ यह था की मेरी आत्मा नीचे खड़ी हुई मेरे शरीर को आवाज़ लगा रही थी कि दोस्त नीचे आ जाओ, पैर ज़मीन पे रहेंगे तब ही भ्रम को सत्य बनाने की हिम्मत आएगी|फिर मैं उल्हास और उत्सुकता से भरी तुरंत नीचे जा पहुँची और देखा की उस जगह पर मेरी आत्मा नहीं, एक गाड़ी खड़ी थी और उसके बोनट पे नज़र आई मेरी छवि |


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