Tuesday, April 3, 2012

मेरा सपना

आदरणीय माता - पिता

यह बात परम्परागत रूप से सत्य हो सकती है कि मेरा सपना मुझे समाज के नियमों के अनुसार एक अच्छी और लायक बेटी घोषित नहीं करता | समाज के रचनकारों के अनुसार जीवन व्यतीत करना मेरे लिए मूर्छित अवस्था में होने जैसा है और इस बात कि स्वीकृति मेरी आत्मा नहीं देती मुझे|

आपका यह समाज , यह दोगुना मानक वाला समाज मेरे सपनों से मेरे संबंध को समझने में असफल है और मुझे इस समाज को अपने ढांचे में ढालने में कोई दिलचस्पी नहीं | मेरी इस पीड़ा को समझने में आप भी आज असमर्थ रहे हैं क्यूँकी आप भी इस समाज के आदर्शों पे चलने वाले पुतले हैं| आज मैं ऐसी कशमकश में हूँ जहाँ आपका प्यार मेरे सपनों के बीच रुकावट बनके खड़ा है |

मैं इस प्यार के बिना तो शायद जिंदा रह लूँ परंतु अपने सपने का दाह संस्कार करना मेरे लिए संभव नहीं|अकेले रह कर संसार के ठहाके सहना शायद आसान हो मेरे लिए पर अपने सपनों को त्याग कर अपने अंतर्मन्न के ठहाकों का शोर मुझे तिल-तिल करके मार देगा |

आपकी बेटी


2 comments:

sourabh said...

aapka ye blog padhkar sach me dil bhar aaya......behad umda likhte hain aap......i salute your feelings and emotions....viase bhi aaj bhaut kam aise log hain jo apni sarto par chalte hain aur jo chalte h unhe to kimat chukani hi padti h....

Saumya Sharma said...

dost mujhe khushi hui ki tumhe ye blog acha laga...par dil ko sambhal ke rakho..sapne pure karne ke liye iska mazboot hona zaruri hai...tumhari sapno ki udan lambi ho...best wishes