मैँ बावरी, मस्त मौला
कभी खाली, कभी भरा मेरी ज़िन्दगी का झोला
मदहोशी नहीं, होश में भी मेरा दिल डोला
मैँ बावरी, मस्त मौला
ग़म में मैँ नाचूँ हो कर मगन
ख़ुशी में हंसता मेरे संग गगन
मुझसे ही मेरा मन बोला
मैँ बावरी, मस्त मौला
चाहे हो नादान बचपन या ज़िद्दी जवानी
हर दिन ज़िन्दगी का, एक नई कहानी
हंसते हुए पीना ज़िन्दगी का खट्टा-मीठा प्याला
मैं बावरी, मस्त मौला
मैं बावरी मस्त मौला
2 comments:
सौम्या, सुन्दर पक्तियां हैं लेकिन अगर वर्तनी दोष को ठीक कर लो तो कविता में चार चांद लग सकते हैं।
सौम्या, पक्तियां सुन्दर हैं लेकिन अगर वर्तनी दोष दूरकर लिये जायें तो कविता में चार चांद लग सकते हैं।
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