Thursday, April 5, 2012

सावन् का इन्तज़ार्


                                 
आज फिर चली दिस्मबर के महीने की हवा सर्द,

लबों पर हंसी आँखों में नमी देता



तेरी  नामौजूदगी  का दर्द

दिल का पंछी आज फिर है उङने को बेकरार

ये धङकने फिर भी करती हैं "सावन का इंत्ज़ार"


वो तेरी साँसों की गर्मि का



मखमला सा एहसास,

आम सी थी मैं पहेलि



 तुने बनाया था कुछ खास,

शीशे से रुबरू हो के करती अब



अपनी तमन्न‌ओं का इज़हार

मेरी परछा‌ई फिर भी करती "सावन का इंत्ज़ार"


तेरी जुस्तजु में खो जाने को 



ऊंघता ऊमङता है मन

तेरे इश्क बिना अधूरा सा लगे यह जीवन,

आँखें आज भी तेरे नाम से करतीं 



सहरी और इफ्तियार

पर मुझे फिर भी है "सावन का इन्तज़ार"

5 comments:

suryaprakash said...

आपकी यह पोस्ट बेहतरीन लगी...आपका प्रयास सराहनीय है.

Saumya Sharma said...

धन्यवाद...पर अभी दिल्ली दूर है :)

Unknown said...

दिल्ली दूर है...क्या मतलब.

Saumya Sharma said...

matlab abhi aur likhna hai aur swayam ko aur behtar banana hai

Unknown said...

aap achcha likhti hain...ab dilli door nahin.