Saturday, March 1, 2014

सुन्हेरी बालुका (तसवीर - वृत्तचित्र 'ताण बेकरो' द्वारा 'सौम्या शर्मा')




नाथ की आड़ में छुपे तुम मठाधीश

क्यूँ भूल गए नाग-मणि मुकुट को ?
जिसे सुशोभित करती वह सुन्हेरी
बालुका सी मोहक निर्जन मुस्कान,
जो तुम्हारे समाज की परिधि पर 
अछूत-नंदन कि भांति दूर खड़ी है,
फिर क्यूँ पक्षपात 'भोले' - 'भोले' में ?
कहाँ गया अब तुम्हारा वो स्नेह पात्र ?
जिसकी कोर श्वेत पाखंड से भर कर 
तुम उस धूलि में चमकते जीव को
अपनी स्मृति में नखलिस्तान बना देते,
अब कैसा तुम्हारा आस्था का बवंडर,
जो अछूत को पूजे और अछूत को कहे खंडर...



# सपेरा जाति आज भी 'अछूत स्टेटस' के साथ समाज में रहती है | विडम्बना यह है कि जिसे छू नहीं सकते वह समाज से प्रतिबंधित कर दिया जाता है| फिर उस नीलाम्बर में बैठे दिव्य का क्या जो अछूत-अप्रत्यक्ष है...कहीं यह दिव्य मानव स्मृति की सुविधा का परिणाम तो नहीं...?

"ताण बेकरो" - लेखक, निर्देशक, निर्माता : सौम्या शर्मा (VENI VIDI VICI Films Pvt. Ltd.)
सह निर्माता : फैसल अनवार रज्ज़ाकी (ARHAAN ARTS)




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