Monday, June 25, 2012

दर्पण छवि (समीक्षा – सन्दर्भ : लघु फिल्म श्वेत द्वारा ‘कंचन घोष’)





नियति को हमेशा किसी व्यक्ति को उसके जीवन की छवि अपने दर्पण में दिखाने का मार्ग मालूम रहता है इसलिए शायद सिनेमा से ज्यादा साफ़ और सटीक कोई माध्यम नहीं जिसमें आप अपने अप्रत्यक्ष विचारों की वास्तविक प्रतिक्रिया देख सकते हैं | कुछ इसी प्रकार से मेरे भीतर के स्व के प्रतिबिंब को मुझे निर्देशक कंचन घोष की लघु फिल्म ‘श्वेत’ के द्वारा देखने का अवसर मिला है | फिल्म में मूर्त एवं अमूर्त पीड़ाओं के अंत की समानता को दर्शाया गया है, जो कि मेरे अनुसार एक दूसरे कि दर्पण छवि होती हैं | फिल्म से पूर्व दिखाए जाने वाली वैधानिक चेतावनी वास्तविक जीवन की घटनाओं के साथ संयोगिक हो सकती है परन्तु इस फिल्म से जो अध्यात्मिक सम्बन्ध पैदा होता है वो दर्शकों के समक्ष एक अतिसार के रूप में प्रकट किया गया है | कंचन घोष का सरल और सूक्ष्म निर्देशन इस फिल्म में उपस्थित सामाजिक सन्देश के ऊपर ना सिर्फ एक विशेष धारणा आत्मसात करता है परन्तु इसे देखने वाले के विचारों को एक निष्पक्ष व्याख्या करने की पूर्ण स्वतंत्रता देता है | एक अच्छी फिल्म वही होती है जो आपको किसी ज्ञान से प्रभावित ना करते हुए स्वयं को आपके विचारों के समक्ष स्वतंत्र छोड़ देती है | विभिन्न फिल्म समारोह में फिल्म की सफल प्रस्तुति अद्धुत निर्देशक कंचन घोष की विनम्रता को एक इंच से भी स्थानांतरित नहीं कर पाई है और इस फिल्म के बारे में पूछने पर उन्होंने कुछ इस प्रकार से मुझे उत्तर दिया, “मैं यह दावा नहीं करता की फिल्म में अधिक गौण पाठ्य है परन्तु मेरी सफलता इसी में है की ये स्क्रीन कहानी अपने सभी दर्शकों के संग एक सम्बन्ध प्रकट करते हुए एक अत्यंत गहरी विज्ञप्ति जारी कर सके” |




इस फिल्म को देखने के बाद मेरी प्रतिक्रिया कुछ इस प्रकार से थी कि हम हमेशा दूसरों के जीवन के माध्यम से हमारे भीतर और हमारे आसपास हो रही घटनाओं के विश्लेषण करते हैं |इस फिल्म कि शुरुआत में शायद दर्शकों को यह आभास हो सकता है कि यह किसानों और उनके क़र्ज़ कि वो ही पुरानी धारणा हमारे समक्ष प्रस्तुत कर रही है बहरहाल जैसे जैसे फिल्म आगे रोल होती है और आप उस निर्माता एवं निर्देशक कि आँखों से इस फिल्म कि घटनाओं का एहसास करते हैं तब आपको अपने जीवन के कुछ ऐसे पल याद आ जायेंगे जब आपके अंतर्मन में यह सवाल आया होगा कि “मैं कौन हूँ?मेरा अस्तित्व क्या है?” |एक अच्छे निर्देशक कि तरह कंचन घोष ने इस फिल्म कि मूल भावना को हर एक दृश्य के साथ पिरोया है| इसका शीर्षक ‘श्वेत’ एक दम उपयुक्त है क्यूंकि जीवन से पूर्ण और मृत्यु के पश्चात सब श्वेत है और इसके बीच के अंतराल में हमें जीवन कि अभिव्यक्ति के अज्ञात रूपों का एहसास होता है, जैसा कि फिल्म की टैग लाइन में भी कहा गया है “व्हेर लाइव्स मीट एंड कोलाईड”...

No comments: